Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

हिंदी एक पुल की तरह है- के० पी० अनमोल

हिंदी एक पुल की तरह है- के० पी० अनमोल

कोशिश यह भी करें कि ग्लोबल होती हमारी इंग्लिश-प्रेमी नई पीढ़ी को हिंदी से भी जोड़े रखें। उसे अपनी जड़ों का महत्त्व समझाए रखें। वह जिससे दिल से जुड़ेगी, उसे ही अपनाएगी। कोशिश करें कि हिंदी उसके दिल तक पहुँच सके।

मातृभाषा वह है, जिसमें हम सोचते हैं, सपने देखते हैं। मातृभाषा यानी माँ की तरह बाहर की दुनिया से परिचय करवाती, उससे जोड़ती भाषा। इस भाषा का अह्सास अलग ही होता है। बड़े होकर हम चाहे कितनी ही नई भाषाएँ पढ़ लें, कितने ही विषय समझ लें लेकिन वह जो एक भाषा से जुड़ाव है, उस तक कोई नहीं पहुँच सकता। हमें भी चाहिए कि दुनियाभर का ज्ञान अर्जित कर लें, कितनी ही भाषाओँ में पारंगत हो जाएँ लेकिन अपनी मातृभाषा के सँवार और संवर्धन के लिए हमेशा उससे जुड़े रहें, उसके लिए सक्रिय रहें।

हम भारतियों की मातृभाषा हिंदी है। हिंदी का इतिहास हज़ार साल से अधिक का है और यह लगातार अपने आपको अपडेट करते हुए आगे बढ़ रही है। हिंदी का साहित्य भी उच्चकोटि का रहा है और लगातार सृजन की राह पर है। यह एक ऐसी भाषा है, जिसे बहुत वैज्ञानिक तरह की माना जाता है। पूरे विश्व में हिंदी पढ़ने-समझने वालों का एक बहुत बड़ा वर्ग है। यानी गर्व करने के लिए हमारे पास बहुत उपलब्धियाँ हैं। अच्छी बात है।

बस ध्यान यह रखना है कि तकनीक की आँधी में, अंग्रेज़ी के आकर्षण में हमें हिंदी को दरकिनार नहीं करना है। देखना-सीखना सबकुछ है लेकिन यह भी समझना है कि वह हिंदी ही है, जिसने हमें इस लायक बनाया है कि हम यह सब देख-सीख सकें। कोशिश यह भी करें कि ग्लोबल होती हमारी इंग्लिश-प्रेमी नई पीढ़ी को हिंदी से भी जोड़े रखें। उसे अपनी जड़ों का महत्त्व समझाए रखें। वह जिससे दिल से जुड़ेगी, उसे ही अपनाएगी। कोशिश करें कि हिंदी उसके दिल तक पहुँच सके।

भाषाएँ जीवन और व्यक्तित्व के बहुत काम आती हैं। उनसे ही हम अपने आसपास को जान-समझ सकते हैं। इसलिए जितनी भाषाएँ सीख सकें, सीखें। इससे ख़ूब नया सीखने-जानने को मिलेगा। जितनी भाषाएँ, जितने द्वार नई दुनियाओं को जानने के। सीखना-जानना अलग है। ख़ुद को समृद्ध करना अलग है। कैरियर अलग चीज़ है, उसके लिए गणित, विज्ञान, आई०टी० जैसे कई विषय हैं। भाषाएँ और साहित्य कैरियर बेस्ड भले ही न हो, जीवन बेस्ड ज़रूर हैं। जीवन को समझने में बहुत सहायक होती हैं।

जिस तरह हमारे देश में धर्म-जाति-समुदाय मिलकर एक अलग ही वैरायटी पैदा करते हैं, वैसे ही अलग-अलग भाषाएँ भी विविधताओं के ज़रिए अलग ही माहौल रचती हैं। भाषाओं के मामले में संकीर्ण मानसिकता नहीं रखनी चाहिए बल्कि हम जितना जानेंगे, ख़ुद को उतना बेह्तर कर सकेंगे। भाषाएँ हमेशा लचीला और उदार स्वभाव रखती हैं। समय के साथ अपने आपको मॉडरेट करती चलती हैं, तभी शताब्दियों तक जीवित रहती हैं। हमें यह भी ध्यान रखना है कि हमारी भाषा समय के अनुसार अपने आपको अपडेट नहीं करेगी तो पीछे छूट जाएगी। हिंदी ही नहीं, विश्व की सभी भाषाओँ में दूसरी भाषाओँ से बहुत कुछ नया जुड़ता रहता है। इसलिए दूसरी भाषाओँ से शब्द, मुहावरे, वार्ताएँ आदि ग्रहण करने पर हाय तौबा मचाने की बजाय यह समझें कि यह भाषाओँ का स्वभाव है और इसी तरह ये अपने आपको बचाए-बनाए रखती हैं। उर्दू के बेहतरीन शायर सुहैब अहमद फ़ारूकी साहब कहते हैं, "भाषा हवा की तरह है, बहती है तो बढ़ती है। रुक गयी तो बस हो गया।" बहुत ज़्यादा आग्रही होना जड़ कर देता है। हमें भी और भाषा को भी।

पिछले कुछ सालों में हिंदी में भी कितने ही बदलाव देखने में आये हैं। अंग्रेज़ी का तो ये हाथ पकड़कर चल ही रही है, स्थानीय बोलियों के भी बहुत पास आई है दुबारा। तकनीकी भाषा का भी अलग ही डिक्शन लिया है इसने। कुल मिला के यह कि निरंतर समृद्ध कर रही है ये अपने आपको और हम सब भारतीयों को इस पर गर्व होना चाहिए। बाक़ी भाषाएँ हमें ज्ञान देती हैं, धन देती हैं लेकिन यह सुकून देती है।

हिंदी ही है, जो हमारे यहाँ दो इंसानों, दो विचारधाराओं, दो संस्कृतियों और दो भौगोलिक परिवेशों को जोड़ती है। उनके बीच एक संबंध स्थापित करती है। इतनी विविधताओं वाले देश में हिंदी एक पुल की तरह है, जिस पर चलकर हम एक से दूसरे दिल तक पहुँच पाते हैं।

हमारे सभी पाठकों, रचनाकारों और देशवासियों को हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ

1 Total Review

सुबोध मिश्र

15 September 2024

आप ठीक कह रहे हैं। मातृ भाषा का आत्मिक सम्मोहन जीवन पर्यंत जीवंत बना रहता है और जाने अनजाने अनजाना अपनापन समाहित करता रहता है।

Leave Your Review Here

रचनाकार परिचय

के० पी० अनमोल

ईमेल : kpanmol.rke15@gmail.com

निवास : रुड़की (उत्तराखण्ड)

जन्मतिथि- 19 सितम्बर
जन्मस्थान- साँचोर (राजस्थान)
शिक्षा- एम० ए० एवं यू०जी०सी० नेट (हिन्दी), डिप्लोमा इन वेब डिजाइनिंग
लेखन विधाएँ- ग़ज़ल, दोहा, गीत, कविता, समीक्षा एवं आलेख।
प्रकाशन- ग़ज़ल संग्रह 'इक उम्र मुकम्मल' (2013), 'कुछ निशान काग़ज़ पर' (2019), 'जी भर बतियाने के बाद' (2022) एवं 'जैसे बहुत क़रीब' (2023) प्रकाशित।
ज्ञानप्रकाश विवेक (हिन्दी ग़ज़ल की नई चेतना), अनिरुद्ध सिन्हा (हिन्दी ग़ज़ल के युवा चेहरे), हरेराम समीप (हिन्दी ग़ज़लकार: एक अध्ययन (भाग-3), हिन्दी ग़ज़ल की पहचान एवं हिन्दी ग़ज़ल की परम्परा), डॉ० भावना (कसौटियों पर कृतियाँ), डॉ० नितिन सेठी एवं राकेश कुमार आदि द्वारा ग़ज़ल-लेखन पर आलोचनात्मक लेख। अनेक शोध आलेखों में शेर उद्धृत।
ग़ज़ल पंच शतक, ग़ज़ल त्रयोदश, यह समय कुछ खल रहा है, इक्कीसवीं सदी की ग़ज़लें, 21वीं सदी के 21वें साल की बेह्तरीन ग़ज़लें, हिन्दी ग़ज़ल के इम्कान, 2020 की प्रतिनिधि ग़ज़लें, ग़ज़ल के फ़लक पर, नूर-ए-ग़ज़ल, दोहे के सौ रंग, ओ पिता, प्रेम तुम रहना, पश्चिमी राजस्थान की काव्यधारा आदि महत्वपूर्ण समवेत संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।
कविता कोश, अनहद कोलकाता, समकालीन परिदृश्य, अनुभूति, आँच, हस्ताक्षर आदि ऑनलाइन साहित्यिक उपक्रमों पर रचनाएँ प्रकाशित।
चाँद अब हरा हो गया है (प्रेम कविता संग्रह) तथा इक उम्र मुकम्मल (ग़ज़ल संग्रह) एंड्राइड एप के रूप में गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध।
संपादन-
1. ‘हस्ताक्षर’ वेब पत्रिका के मार्च 2015 से फरवरी 2021 तक 68 अंकों का संपादन।
2. 'साहित्य रागिनी' वेब पत्रिका के 17 अंकों का संपादन।
3. त्रैमासिक पत्रिका ‘शब्द-सरिता’ (अलीगढ, उ.प्र.) के 3 अंकों का संपादन।
4. 'शैलसूत्र' त्रैमासिक पत्रिका के ग़ज़ल विशेषांक का संपादन।
5. ‘101 महिला ग़ज़लकार’, ‘समकालीन ग़ज़लकारों की बेह्तरीन ग़ज़लें’, 'ज़हीर क़ुरैशी की उर्दू ग़ज़लें', 'मीठी-सी तल्ख़ियाँ' (भाग-2 व 3), 'ख़्वाबों के रंग’ आदि पुस्तकों का संपादन।
6. 'समकालीन हिंदुस्तानी ग़ज़ल' एवं 'दोहों का दीवान' एंड्राइड एप का संपादन।
प्रसारण- दूरदर्शन राजस्थान तथा आकाशवाणी जोधपुर एवं बाड़मेर पर ग़ज़लों का प्रसारण।
मोबाइल- 8006623499