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भारतीय ज्ञान परम्परा : दृष्टि एवं सृष्टि विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन

भारतीय ज्ञान परम्परा : दृष्टि एवं सृष्टि विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन

मुख्यातिथि के रूप में पधारे आचार्य श्रीनिवास वरखेडी महोदय (माननीयकुलपति, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली) ने संस्कृत चिंतन की अभिनव दृष्टि हेतु अभिप्रेरित किया। आचार्य ने भारतीय होने हेतु भारती का बोध को आवश्यक बताया। रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शिशिर पाण्डेय ‌महोदय ने मौलिक चिंतन पर ज़ोर दिया।

लखनऊ। बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ के संस्कृत एवं वैदिक अध्ययन विभाग के द्वारा अम्बेडकर सामाजिक अध्ययनपीठ सभागार में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल आयोजन किया गया। संगोष्ठी का समन्वयन विभागाध्यक्ष प्रो० रिपुसूदन सिंह तथा संयोजन संस्कृत विभागीय आचार्य डॉ० बिपिन कुमार झा एवं डॉ० रमेश चन्द्र नैलवाल ने किया।

बाबासाहेब अम्बेडकर की प्रतिमा पर पुष्पार्चन एवं दीप प्रज्वलन तथा विभागीय छात्रों के लौकिक एवं वैदिक मंगलाचरण के द्वारा कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। प्रोफेसर रिपुसूदन सिंह ने अंगवस्त्र एवं स्मृति चिह्न प्रदान कर अतिथियों का स्वागत किया। डॉ० बिपिन कुमार झा ने अतिथि एवं विभाग परिचय प्रस्तुत किया।

मुख्यातिथि के रूप में पधारे आचार्य श्रीनिवास वरखेडी महोदय (माननीयकुलपति, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली) ने संस्कृत चिंतन की अभिनव दृष्टि हेतु अभिप्रेरित किया। आचार्य ने भारतीय होने हेतु भारती का बोध को आवश्यक बताया। रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शिशिर पाण्डेय ‌महोदय ने मौलिक चिंतन पर ज़ोर दिया।

संस्कृत के युवा कवि, लेखक एवं आलोचक डॉ० अरुण निषाद ने कहा कि संस्कृत भाषा प्राचीन चिर नवीना है। 21वीं सदी के वांग्मय में विश्व साहित्य की लगभग विधाओं पर लेखन कार्य हो रहा है। इसमें युवा रचनाकारों की सहभागिता अत्यंत प्रशंसनीय है। लखनऊ विश्विद्यालय की शोधछात्रा शिखरानी ने कहा कि संस्कृत में जो लिखा जा रहा है, वह पढ़ा भी जाना चाहिए।

इस कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में विविध विश्वविद्यालयों से आए प्राध्यापकों एवं शोधार्थियों द्वारा पत्र वाचन किए गए, जिसके सार रूप में कहा जा सकता है कि सनातन गंगा प्रवाहवत अनवरत प्रवाहित भारतीय ज्ञान परम्परा वेद एवं वांग्मय की विविध विधाओं में लिखित ज्ञान-विज्ञान के विविध ग्रन्थों के माध्यम से वैश्विक सन्दर्भ में आज भी अत्यन्त प्रासंगिक एवं उपादेय हैं। प्राचीन काल से ही यह ज्ञान सम्पदा भारतीय मनीषियों के द्वारा परिष्कारपूर्वक संरक्षित एवं प्रचारित की जाती रही है। वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी भारतीय ज्ञान परम्परा के महत्त्व को विस्तृत रूप से रेखांकित किया गया है, जिसमें प्रायः ज्ञान-विज्ञान के सभी क्षेत्रों में भारतीय ज्ञान परम्परा को अपनाने एवं नवीन प्रकार से प्रकाशित करने का आह्वान किया गया है।

इस अवसर पर संकायाध्यक्ष प्रो० सर्वेश सिंह ने छात्रों को संस्कृत अध्ययन हेतु प्रोत्साहित किया। अंत मे सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र भी प्रदान किया गया। विभागीय छात्रा मैत्रिया ने धन्यवाद ज्ञापन किया तथा कल्याण मन्त्र से सभा का समापन किया गया। संस्कृत विभागीय आचार्य डॉ० रमेश चन्द्र नैलवाल ने सभा का संचालन किया। कार्यक्रम में योग, इतिहास, राजनीति शास्त्र, विधि आदि विभागों के विभागाध्यक्ष, आचार्य एवं छात्रों की उपस्थिति रही।

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