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लक्ष्मण बूटी संजीवनी बूटी- डॉ० आरती 'लोकेश'

लक्ष्मण बूटी संजीवनी बूटी- डॉ० आरती 'लोकेश'

शोध-सार

रामाचरितमानस के छठे कांड 'लंका काण्ड' में रावण के पराक्रमी शूरवीर पुत्र मेघनाद से लड़ते हुए प्रभु राम के छोटे भाई लक्ष्मण मूर्छित हो जाते हैं तो संकटमोचन पवनपुत्र हनुमान को पहले भेजा जाता है लंका के सुविख्यात वैद्य सुषेण को लाने और वैद्य के बताने पर संजीवनी बूटी लेने भेजा जाता है। जिस पर्वत पर बूटी मिलती है, उसे उखाड़कर अंजनिसुत लंका ले आते हैं और सुषेण वैद्य लक्ष्मण जी की चिकित्सा कर उन्हें होश में लाते हैं। संजीवनी बूटी देनेवाला यह पर्वत अब श्रीलंका की ही नैसर्गिक सम्पदा में सम्मिलित है। श्रीलंका की जलवायु में उगने वाले पेड़-पौधों से प्रतिकूल इस पर उगी भिन्न वनस्पति इस बात का प्रमाण है कि यह मूल रूप से लंका का न होकर बाहर से आगत सम्पत्ति है। संजीवनी बूटी के गुण किसी अन्य बूटी से अलग हैं। यह एक आयुर्वेदिक शक्तिदायक औषधि है, जो मृत कोशिकाओं में पुनर्जीवन का संचार करती है। इसकी मुख्य विशेषता है कि पानी की कमी से सूखकर पपड़ी जैसे बन जानेवाले ये पौधे पानी के संसर्ग से एक अर्से बाद भी पुन: तरोताज़ा हो जाते हैं। अपनी ही मृत कोशिकाओं में जीवन फूँक देते हैं, कुकनूस पक्षी की तरह। जिस ज्ञान-विज्ञान से हमारे पूर्वज शताब्दियों पहले समृद्ध थे, उसे इतने वर्षों बाद हम कितना जान पाए हैं, यह समझने की आवश्यकता है। संजीवनी बूटी के इतिहास तथा उस पर हुए अनुसंधानिक तथ्यों का समावेश इस पत्र में किया गया है तथा ऐसी चमत्कारिक औषधियों के ज्ञान को लुप्त न होने देने पर बल दिया गया है।

दैत्य, दानव और राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उनसे अमर होने का वरदान माँगा। ऐसा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध तथा असंभव होने के कारण शिव जी ने उन्हें मृत्यु से बचाने वाली संजीवनी विद्या के बारे में बताया। ऐसा माना जाता है कि शुक्राचार्य ने उस विद्या को सीखकर युद्ध में मारे गए दैत्यों को फिर से जीवित कर दिया। रामायण और रामचरितमानस में इसी विद्या का उपयोग वैद्य सुषेण ने भी किया। तब से संजीवनी बूटी को लक्ष्मण बूटी भी कहते हैं।

'संजीवनी' शब्द सम्+जीवनी, दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है जीवन को बराबर बनाए रखने वाली बूटी। आयुर्वेद में बहुत प्रकार की जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें हम 'हर्ब्स' कहते हैं और उनसे निर्मित औषधियों अथवा उत्पादों को 'हर्बल'। स्वास्थ्य लाभ करने वाली वनस्पति दो प्रकार से प्राप्त की जाती है- उखाड़कर अथवा तोड़कर। धरती के नीचे से खोदकर निकाला जाने वाला भाग जड़ी और सतह के ऊपर से चुना जाने वाला भाग बूटी कहलाता है।

त्रेता युग में भगवान विष्णु के अवतार राम मर्यादा पुरुषोत्तम रूप में व्यवहार करते हैं। पत्नी सीता के रावण द्वारा हरण किए जाने पर मानव की भाँति योजनाबद्ध रीति से रावण की लंका पर चढ़ाई करते हैं। इस कथा को पढ़ते हुए रामचरित मानस के षष्ठम कांड 'लंका काण्ड' में हम पाते हैं कि लक्ष्मण जी और मेघनाद दोनों योद्धाओं के परस्पर युद्ध में जब मेघनाद को अपने प्राण संकट में जान पड़े तो मेघनाद ने वीरों का नाश करनेवाली 'वीरघातिनी' शक्ति चलाई। तेज से पूर्ण वह शक्ति लक्ष्मण जी के सीने में जा लगी, जिससे वे मूर्छित हो गए। राम को आसपास न पाकर सर्वव्यापक, ब्रह्म, अजेय, सब लोकों के स्वामी और करुणा की खान श्री रामचन्द्र जी लक्ष्मण जी की कुशलता जानने को व्याकुल हो उठे। छोटे भाई को मूर्छित देखकर प्रभु बड़े दुखी हो गए।
तुलसी रामायण 1008 पंक्तियों में से पंक्ति संख्या 812 से 822 में पृष्ठ 83-84 पर इसका उल्लेख आता है।

812 जामवंत कह बैद सुषेना । लंकाँ रहइ को पठई लेना ॥ 6.55.C7
813 धरि लघु रूप गयउ हनुमंता । आनेउ भवन समेत तुरंता ॥ 6.55.C8

जामवंत जी के परामर्श पर हनुमान जी लंका के निवासी सुषेण वैद्य को लेने गए, जिन्हें वे उनके घर समेत ही उठा लाए। हनुमान जी की यही प्रवृत्ति तब भी प्रकट हुई, जब वैद्य सुषेण के इलाज बताने पर वे आकाशमार्ग से सुदूर पर्वत पर औषधि लेने गए।

814 राम पदारबिंद सिर नायउ आइ सुषेन । 6.55.D1
815 कहा नाम गिरि औषधी जाहु पवनसुत लेन ॥ 6.55.D2

सुषेण वैद्य हनुमान को द्रोणगिरी पर्वत पर जाकर 4 जड़ी बूटियाँ लाने की आज्ञा देते हैं– मृत संजीवनी (मरे हुए को जिवाने वाली), विशाल्यकरणी (तीर निकालने वाली), संधानकरणी (त्वचा को स्वस्थ करने वाली) तथा सवर्ण्यकरणी (त्वचा का रंग बहाल करने वाली)। इन सभी जड़ी-बूटियों में से सदैव प्रकाश विकीर्णित होता है। अत: इन्हें परखकर अविलम्ब वापिस आ जाना है।

816 राम चरन सरसिज उर राखी । चला प्रभंजनसुत बल भाषी ॥ 6.56.C1
817 देखा सैल न औषध चीन्हा । सहसा कपि उपारि गिरि लीन्हा ॥ 6.58.C7

हनुमान जी हिमालय पर कैलाश पर्वत और ऋषभ पर्वत के बीच द्रोणगिरी पर्वत पर पहुँच जाते हैं परंतु वनस्पतियों की पहचान न होने और समय की कमी के कारण पूरा पर्वत उठा कर ले आते है। किंवदंती के अनुसार जहाँ से हनुमान जी संजीवनी बूटी लाए थे, वह गाँव देवभूमि उत्तराखंड में चमोली क्षेत्र में है। इस गाँव का नाम 'द्रोणागिरि' है। लोग इस पर्वत की पूजा करते थे। जिस वक्त हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने आए, तब पहाड़ देवता ध्यान मुद्रा में थे। हनुमान जी ने पहाड़ देवता की न ही अनुमति ली और न ही उनकी सा‍धना पूरी होने की प्रतीक्षा की, अत: वहाँ के रहवासी हनुमान जी से रुष्ट हो गए।

821 आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस ॥ 6.61.S2
822 तुरत बैद तब कीन्हि उपाई । उठि बैठे लछिमन हरषाई ॥ 6.62.C2

सुषेण वैद्य इन जड़ी-बूटियों से औषधि निर्मित करते हैं और लक्ष्मण को मृत्यु से छुड़ाकर जीवन दान देते हैं। इस औषधि को ही संजीवनी बूटी का नाम दिया गया। हनुमान जी द्रोणगिरी पर्वत उठाकर श्रीलंका में ले लाए फिर वह अपने स्थान पर पुनर्स्थापित न हुआ, श्रीलंका में ही रह गया। माना जाता है कि हनुमानजी ने इस पहाड़ के टुकड़ों को इस क्षेत्र विशेष में डाल दिया था। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह पर्वत आज भी श्रीलंका में मौजूद है और रूमास्सला पर्वत के नाम से जाना जाता है। यहीं एक बहुत सुंदर बीच है- उनावटाना बीच। 'उनावटाना' का अर्थ होता है- आसमान से गिरा। श्रीलंका के दक्षिण समुद्री किनारे पर कई ऐसी जगहें हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वहाँ हनुमान के लाए पहाड़ से गिरे टुकड़े हैं। इन जगहों पर मिलने वाले पेड़-पौधे श्रीलंका के बाकी इलाकों में मिलने वाले पेड़-पौधों से काफी अलग हैं। रूमास्सला के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान रीतिगाला है। पहाड़ उठाए हुए श्रीलंका जाते समय ही कुछ टुकड़े इस स्थान पर गिर गए थे। रीतिगाला की भी यही विशेषता है कि वहाँ उगने वाली जड़ी-बूटियाँ अपने आसपास के इलाके से बिल्कुल अलग हैं। इसके अलावा श्रीलंका के नुवारा एलिया शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर हाकागाला गार्डन है, जहाँ कदाचित हनुमान के लाए पहाड़ का दूसरा बड़ा हिस्सा गिरा। इस जगह की उर्वरा उस इलाके की मिट्टी और पादपों से बिलकुल अलग हैं।

वनस्पति वैज्ञानिकों की दृष्टि में संजीवनी के लिए उपादेय ये, संवहनी पौधे होते हैं जो शुष्क सतह और पत्थरों पर भी उग सकते हैं। यदि इन्हें नमी न मिलें तो मुरझा जाते हैं लेकिन नमी के मिलने पर पुनः हरे-भरे हो जाते हैं। माना जाता है कि इसका पौधा लगभग तीस अरब साल पहले कार्बोनिफेरस युग से है। विशिष्ट जाति के ये पौधे भारत और नेपाल में पाए जाते हैं। इसका वानस्पतिक नाम सेलाजिनेला ब्राह्पटेसिर्स है। भारत के पहाड़ी क्षेत्रों और आदिवासी क्षेत्र में पाई जाने वाली सेलाजिनेला ब्राह्पटेसिर्स नामक वनस्पति में चमक होती है। यह बूटी रात्रि काल में चमकती है। इन्हीं गुणों के कारण वैज्ञानिक इस बूटी की प्रामाणिकता की जाँच में जुटे हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक संजीवनी की असली पहचान काफी मुश्किल है क्योंकि जंगलों में इसकी तरह के कई ऐसे पौधे और वनस्पतियाँ उगती हैं, जिनसे संजीवनी होने के भ्रम की स्थिति हो सकती है। मगर कहा जाता है कि चार इंच के आकार वाली संजीवनी लंबाई में ऊँचा बढ़ने की बजाए सतह पर फैलती है।इसके पौधे की पहचान के बारे में वनस्पति वैज्ञानिकों में अभी मतभेद हैं।

कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बेंगलुरु और वानिकी महाविद्यालय, सिरसी के वनस्पति वैज्ञानिकों डॉ० के०एन० गणेशैया, डॉ० आर० वासुदेव तथा डॉ० आर० उमाशंकर ने बेहद व्यवस्थित ढंग से इस पर शोध कर 2 पौधों को चिह्नित किया है। लखनऊ में स्थित वनस्पति अनुसंधान केंद्र के अनुसार यह वनस्पति पौधों के टेरीडोफिया समूह की है। यह वनस्पति चमकदार और विचित्र गंध से युक्त होती है।
अब वैज्ञानिक संजीवनी के जीन पर शोधरत हैं ताकि इसके लंबे वक्त तक और बेहद मुश्किल वातावरण में भी जिंदा रहने के गुण का पता चल सके। जीन का पता खासतौर से सूखाग्रस्त इलाकों के पौधों और खेतों के लिए वरदान साबित हो सकता है।

वैद्य सुषेण द्वारा बताई गई चार बूटियों में से मृत संजीवनी बूटी सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके बारे में कहा जाता है कि यह व्यक्ति को मृत्युशैया से पुनः स्वस्थ कर सकती है। संजीवनी बूटी को अमर बूटी भी कहते हैं क्योंकि इसमें मानव शरीर की मृत कोशिकाओं को जीवित करने की क्षमता होती है। हृदयाघात, पीलिया तथा अन्य कई रोगों में संजीवनी बूटी से निर्मित औषधि प्रभावी रहती है। ये न सिर्फ पेट के रोगों में बल्कि इंसान के कद को बढ़ाने में भी फायदेमंद होती है। संजीवनी बूटी आज स्वास्थ्य जगत में चर्चा का विषय है, विशेषकर आयुर्वेद अनुसंधान में। योग गुरु रामदेव के हरिद्वार स्थित पतंजलि योगपीठ ने संजीवनी बूटी को खोज लेने का दावा किया है। पतंजलि योग पीठ के 2 विशेषज्ञों के साथ 14 सदस्यीय टीम लंबे समय से इस बूटी की तलाश में थी। पतंजलि योग पीठ के दावे के अनुसार इस संजीवनी बूटी को उन्होंने उसी द्रोण गाँव से ढूँढा है। कई बूटियों से मिलकर संजीवनी बूटी बनती है। इसी तरह की दो बूटियों का नाम पतंजलि पीठ फेनिकमल और बियांड बता रहा है। पतंजलि पीठ के आयुर्वैज्ञानिक इस खोज को अभी अपने शोध का शुरुआती चरण बता रहे हैं।

उपसंहार

भारत में आयुर्वेद की विद्या सदियों पुरानी है, जिसमें शल्य चिकित्सा तक का प्रावधान था। भयंकर से भयंकर रोगों का निदान आयुर्वेदिक चिकित्सक यानी वैद्य कर लिया करते थे। केवल नाड़ी टटोलकर रोग का पता कर लेने की क्षमता भी अद्वितीय रही है। समय के साथ आगे बढ़ते हुए हम अपनी जड़ों से कटते गए और अपने प्राचीन आयुर्विज्ञान के नियमों, निदानों और उपायों पर स्वयं प्रश्नचिह्न लगाने लगे। जहाँ यह विद्या और समुन्नत होनी चाहिए थी, अपनों ही के द्वारा काट दी जाने के कारण संजीवनी जैसी ही सूख गई है। अब आवश्यकता है कि इसे विश्वास और उपयोग के जल से सिंचित कर पुन: जीवन दिया जाए और अपने पूर्वजों पर गर्वानुभूति की जाए। इसका उपयोग लाइलाज बीमारियों के उपचार में सहायक सिद्ध हो सकेगा। उपयोग में लाए जाने योग्य पानी की कमी से जिस प्रकार वनस्पति जगत की हानि हो रही है, संभवत: उस क्षति की पूर्ति भी की जा सके।

 

संदर्भ ग्रंथ-
1. तुलसीकृत रामचरितमानस
2. तुलसी रामायण 1008 पंक्तियों में (संक्षिप्त रामचरितमानस)
3. वेबदुनिया हिंदी, सनातन धर्म
4. जनसत्ता समाचार पत्र
5. नवभारत टाइम्स समाचार-पत्र
6. आजतक समाचार
7. हिंदी न्यूज़ ऑनलाइन पत्र
8. न्यूज़ जगत्गुरु रामपाल जी वक्तव्य

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रचनाकार परिचय

आरती 'लोकेश'

ईमेल : arti.goel@hotmail.com

निवास : दुबई, संयुक्त अरब अमीरात

सम्प्रति- लेखिका, कवयित्री एवं शिक्षाविद
निवास- दुबई, संयुक्त अरब अमीरात
मोबाइल- +971504270752
संक्षिप्त परिचय
डॉ. आरती ‘लोकेश' ढाई दशकों से दुबई में निवास करती हैं। यू.ए.ई. सरकार द्वारा उनके लेखन कार्य के लिए ‘गोल्डन वीसा’ दिया गया है। अंग्रेज़ी-हिन्दी दोनों विषयों में स्नातकोत्तर होने के साथ ही हिन्दी में गोल्ड मैडलिस्ट व पी.एच.डी. हैं। लेखन व संपादन के अतिरिक्त पाठ्यक्रम निर्माण व शोध-निर्देशन का कार्य भी कर रही हैं । ‘अनन्य यू.ए.ई.' की मुख्य संपादक तथा अमेरिका, यू.ए.ई. व भारत की कई पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं तथा शोध जर्नल का सह-संपादन भार भी सँभाला हुआ है। इनके 4 उपन्यास, 4 कविता-संग्रह, 4 कहानी-संग्रह, 4 कथेतर गद्य, यू.ए.ई. के बालकों व वयस्कों की रचनाओं के संकलन की 6 संपादित मिलाकर 22 पुस्तकें प्रकाशित व 5 अन्य प्रकाशनाधीन हैं। इनके साहित्य पर पंजाब, हरियाणा, ओडिसा,  मॉरीशस व यूक्रेन के विश्वविद्यालय में विद्यार्थी शोध कर रहे हैं। इनकी अनेक रचनाओं पर अनुवाद किया जा रहा है। इनके साहित्य पर दो प्रवक्ताओं, डॉ. उर्मिला व डॉ. पूनम के सम्पादन में पुस्तक ‘डॉ॰ आरती ‘लोकेश’ की साहित्य सुरभि’ प्रकाशित हो चुकी है।

इन्हें भारत व मॉरीशस सरकार द्वारा सर्वप्रतिष्ठित सम्मान ‘आप्रवासी हिन्दी साहित्य सृजन सम्मान’ $2000 राशि सहित, ‘काव्य विभूषण’, ‘महाकवि प्रो॰ हरिशंकर आदेश साहित्य सम्मान’, ‘रंग राची सम्मान’, 'शब्द शिल्पी भूषण  सम्मान', 'प्रज्ञा सम्मान', ‘निर्मला स्मृति हिन्दी साहित्य रत्न सम्मान’, ‘प्रवासी भारतीय समरस श्री साहित्य सम्मान’, ‘शिक्षा रत्न’, ‘कलम की सुगंध हिंदी सेवी सम्मान’  से  नवाज़ा गया है। रेडियो ‘मेरी आवाज़’ द्वारा विश्व की 101 प्रभावशाली महिलाओं में नाम सम्मिलित है।