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दामाद: द मोस्ट ओवररेटेड रिश्ता- प्रीति 'अज्ञात'

दामाद: द मोस्ट ओवररेटेड रिश्ता- प्रीति 'अज्ञात'

होता क्या है कि जैसे बहू गृहप्रवेश के साथ ही पूरा घर सँभालने लगती है, इसके ठीक उलट दामाद जी के चरण पड़ते ही पूरा घर उन्हें सँभालने लगता है। परिजन स्वागतातुर हो उनकी राहों में फूल बिछा दिया करते हैं। प्रबल प्रेम पक्ष तो अपनी जगह है ही लेकिन कहीं एक भय भी रहता है कि दामाद नाराज़ न हो जाए। उसकी नाराज़गी का अप्रत्यक्ष मतलब बेटी को दुःख मान लिया जाता है।

अब आपको भले ही अतिश्योक्ति लगे पर हमारे समाज में दामाद को ईश्वर तुल्य ही मान लिया गया है। वह घर का सदस्य होते हुए भी सदैव विशिष्ट अतिथि के पद पर मनोनीत रहता है। यही वह प्राणी भी है, जिसकी उपस्थिति में घर का सबसे रोशन चिराग़ स्वयं को उपेक्षित, तिरस्कृत और सेवक महसूस करता है। झिड़कियाँ भी खाता ही है। ख़ैर! अब साले साहब बने हैं तो ये उनका नैतिक कर्तव्य है कि जीजू की सेवा सुश्रुषा में कोई कमी न रह जाए। 'जिनके आगे जी, जिनके पीछे जी' के सामने खिलखिलाने और वातावरण को सुरमई बनाए रखने में साली की भूमिका भी अहम होती है। ये वही देवी हैं, जो बारात के आने पर सबसे अधिक चहकती हैं और 'जूता चुराई' के समय इक्कीस हजार से शुरू कर इक्कीस सौ पर समझौता कर लेती हैं। दरअसल विवाह पद्धति में ये सब परम्पराएँ बनी ही इसलिए हैं कि दो अजनबी परिवारों में स्नेह और सौहार्द्र के भाव पनपें और आगे जाकर एक अटूट, प्रगाढ़ रिश्ता बने।

होता क्या है कि जैसे बहू गृहप्रवेश के साथ ही पूरा घर सँभालने लगती है, इसके ठीक उलट दामाद जी के चरण पड़ते ही पूरा घर उन्हें सँभालने लगता है। परिजन स्वागतातुर हो उनकी राहों में फूल बिछा दिया करते हैं। प्रबल प्रेम पक्ष तो अपनी जगह है ही लेकिन कहीं एक भय भी रहता है कि दामाद नाराज़ न हो जाए। उसकी नाराज़गी का अप्रत्यक्ष मतलब बेटी को दुःख मान लिया जाता है। यद्यपि ऐसा हर घर में होता नहीं है परंतु आम सोच यही है। तो जब इतनी सारी बातें जुड़ी हुई हैं तब आवभगत तो होनी ही है।

हमारे समाज में आवभगत का एक ही सीधा-सीधा अर्थ है कि जमकर खिलाओ (इसे ठुंसाओ की तरह लें)। हफ़्तों पहले से ही किसी रेस्टोरेंट के मेनू की तरह व्यंजन-सूची तैयार कर ली जाती है। फिर दामाद जी का पदार्पण होते ही दसियों तरह की मिठाइयों से सजे मिष्ठान-थाल के साथ उनका और इस सूची का भव्य उद्धाटन होता है। तत्पश्चात आगामी प्रयोगों हेतु प्रयोगशाला खोल दी जाती है। मिठाई यह कहकर खिलाना शुरू होता है, 'अजी, इतने समय बाद आए हैं कानपुरिया लड्डू से मुँह तो मीठा करना ही पड़ेगा!' 'ये चॉकलेट बरफ़ी तो मेरी बिट्टो ने ख़ास आपके लिए ही बनाई है। कह रही थी कि जब तक जीजाजी नहीं चखेंगे, कोई हाथ भी न लगाना।’ और 'ये सोनहलवा तो बरेली वाली मौसी ने आज सुबह ही भिजवाया है कि भई, दामाद जी को हमारा आशीर्वाद ज़रूर देना।'

उसके बाद चाय-नाश्ता फिर फ़लाहार कराया जाता है। दामाद आराम करने का मन बना लेता है तभी साली जी ठुमकती हुई आकर कहती हैं, 'अरे, जीजू अभी लंच तो किया ही नहीं!' उसके बाद शाम की चाय के साथ समोसे और फिर रात्रिभोज में पड़ोस वाली आंटी जी के यहाँ भी जाना ज़रूरी होता है वरना वो बुरा मान जाएँगी जी। अब दिल पर हाथ रखकर आप ही बताइए कि जिस फ़ूफ़ा के साथ ऐसा हो रहा है और उस पर सदियों से देश मज़ाक भी उड़ा रहा है, उसे नाराज़ होना चाहिए कि नहीं?

अब सबकी इच्छाओं की पूर्ति करते-करते दामाद जी का जो हाल होता है, वो तो वह ही जानें! कई बार युवक ससुराल जाने के नाम से ही घबराते हैं। कुछ अगली बार ससुराल जाते समय पहले से ही झूठी कहानी बनाकर तैयार रखते हैं कि मम्मी को कह देना 'डॉक्टर ने घी-तेल खाने को मना किया है।’ इसमें कोई दो राय नहीं कि दामाद जी की आवभगत में एक माँ का, अपनी बेटी और दामाद के लिए विशुद्ध प्रेम और ममता से भरा भाव ही है और कुछ नहीं। भारतीय समाज में सास और दामाद का रिश्ता बहुत मधुर भी होता है। अतिथि को भी हमारे समाज में बहुत मान देते हैं। लेकिन लड़ियाते हुए लोग यह भूल जाते हैं कि पेट और पाचन तंत्र सबका एक-सा ही होता है।

सौ बात की एक बात! बस इतना समझ लो और भगवान के लिए मान भी लो कि दामाद हमारी-आपकी तरह ही एक मनुष्य है। वह कोई असुर लोक से नहीं पधारा है बल्कि इसी पृथ्वी ग्रह का प्राणी है। प्यार करो, खिलाओ भी पर जबरन खिला-खिलाकर अत्याचार नहीं।

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रचनाकार परिचय

प्रीति 'अज्ञात'

ईमेल : preetiagyaat@gmail.com

निवास : अहमदाबाद (गुजरात)

सम्प्रति- संस्थापक एवं प्रधान संपादक, हस्ताक्षर वेब पत्रिका
प्रकाशन- मध्यांतर (काव्य, 2016), दोपहर की धूप में (आलेख, 2019), सर्वे भवन्तु सुखिनः (आलेख, 2021) एवं देश मेरा रंगरेज़ (व्यंग्य, 2022)
सम्मान- गुजरात साहित्य अकादमी सहित दर्जनों सम्मान।
निवास- अहमदाबाद (गुजरात)