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कानपुर का नवजागरण भाग एक- प० लक्ष्मीकांत त्रिपाठी

कानपुर का नवजागरण भाग एक- प० लक्ष्मीकांत त्रिपाठी

कानपुर इतिहास समिति के प्रथम मंत्री पण्डित लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी द्वारा कानपुर नवजागरण पर लिखित आलेख जो कि पूर्व में दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ था को हम धारावाहिक के रूप में प्रकाश्त करने जा रहे हैं, इसमें 1857 की क्रांति में कानपुर के योगदान का विस्तृत वर्णन है। यह आलेख हमें इतिहासकार अनूप शुक्ल जी के सौजन्य से प्राप्त हुआ है। 

सन्1857 मे नाना साहब के नेतृत्व मे आधुनिक भारत के प्रथम स्वतंत्रता-संग्राम के जन्म तथा रंगमंचीय विकास का श्रेय कानपुर की पावन भूमि को है। क्रान्ति यो तो असफल हुई, लेकिन जो अमर आलोक और संदेश यह छोड़ गई, और जिस पृष्ठभूमि की रचना इस क्रान्ति ने की उसी का प्रतिफल आज का स्वतंत्र देश है। क्रान्ति के पश्चात ईस्ट इण्डिया कम्पनी का दमन चक्र पूरे वेग से कानपुर पर चल पड़ा, जिससे हमारे नगर को गहरी चोटें लगी। सन् 1858 में महारानी विक्टोरिया की घोषणा के साथ ही भारत बिट्रिश साम्राज्यान्तर्गत आ गया था। क्रान्ति की जन्मभूमि होने के कारण विशेष रुप से आधुनिक कानपुर का नवनिर्माण आरम्भ हुआ और साथ ही साथ भारतीय क्रीतदासों की भर्ती भी यहाँ जागीरें और पुरस्कार बाँट कर की गई जो बिट्रिश शासन का कवच बनी। कानपुर अब अपेक्षाकृत ठंडा एवं कुन्ठाग्रस्त था लेकिन उसकी रगों में कभी कभी बिजली दौड़ जाती थी। लार्ड लिटन के दमनकारी शासन ने देश को ऊष्मा प्रदान की जिसका मुखर रूप सन् 1876 में श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी द्वारा स्थापित "इण्डिया एसोसिएशन" था।  इस एसोसिएशन के प्रचारार्थ सन् 1877 में श्री बनर्जी कानपुर पधारे और इस बेजोड़ वक्ता का ऐतिहासिक भाषण स्टेशन थियेटर(जहाँ अब मुख्य तारघर है) में हुआ था। इस भाषण ने कानपुर की उर्वरा भूमि मे राजनैतिक चेतना के बीज बो दिए।  क्रान्ति कदापि अनायास नहीं उतरती, वह तो मनीषियों, दार्शनिकों तथा चिन्तकों के अथक परिश्रम और बलिदान से सजी, सँवारी, जीवन्त तपोभूमि पर ही थिरकती है। हिन्दी का प्रथम पत्र कानपुर के ही प० जुगुलकिशोर शुक्ल ने कलकत्ते से 16 फरवरी 1826 को "उदन्त मार्तण्ड" नाम से निकाला था जिसकी प्रथम प्रति आज भी कलकत्ता संग्रहालय की अनुपम निधि है। कानपुर से 1871 में "हिन्दू प्रकाश" , तथा 1879 में "शुभ चिन्तक" नाम के दो पत्र निकले लेकिन शीघ्र ही काल कवलित हो गए।  सन् 1875 में स्वामी दयानन्द द्वारा स्थापित "आर्य समाज" नव निर्माण की संजीवनी सँजोये देश प्रेम से ओत प्रोत विशुद्ध वैदिक दर्शन और जीवन पद्धति के पुनर्जागरण की प्रेरणा लेकर आया। सन् 1879 में प० रामदीन, प० प्रतापनारायण मिश्र आदि नवयुवकों ने मिलकर कानपुर मे आर्य समाज की स्थापना की, जिसने नगर मे नव सांस्कृतिक और राजनैतिक विचारों को जन मानस तक पहुँचाया। गोरक्षा, समाज सुधार आदि विषयों को लेकर ये आर्यसमाजी, घरों में  गोष्ठियाँ आयोजित करते थे, क्योंकि इस समय तक आर्य समाज का कोई अपना भवन नहीं था, और कभी कभी ये लोग ईसाई पादरियों से मोर्चा भी लेते थे। 15 मार्च 1883 कोपण्डित प्रताप नारायण मिश्र ने अपने प्रसिद्ध पत्र "ब्राह्मण" का प्रकाशन प्रारंभ किया, जिसमें एक ओर मिश्र जी ने सामाजिक कुरीतियों, देश में व्याप्त आर्थिक विपन्नता, गोवध आदि पर बड़े तिलमिलाते व्यंग लिखे तो दूसरी ओर देश के नौनिहालों को जगाया और उनमें देश प्रेम का भाव भरा।

"सब धन लिहे जात अंगरेज, हम केवल लेक्चर के तेज।

पढ़ि कमाय कीन्हयो कहा हरयो न देश कलेस,

जैसे कंता घर रहे तैसे रहे विदेश।"

मिश्र जी ने बड़ी निर्भीकता के साथ बिट्रिश शासन मे व्याप्त रिश्वत, भ्रष्टाचार आदि पर उग्र प्रहार किये। मिश्र जी ने "नाटक सभा" की स्थापना की और कई नाटकों की रचना कर बहुत से नाटकों को अभिनीत कर आपने यहाँ के जनमानस मे सांस्कृतिक और राजनैतिक चेतना का संचार किया | वास्तविक अर्थो मे मिश्र जी कानपुर मे नवयुग के अग्रदूत थे।

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क्रमशः

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रचनाकार परिचय

पण्डित लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी

ईमेल :

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

पण्डित अम्बिकाप्रसाद त्रिपाठी के पुत्र पण्डित लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी जी का जन्म 20 अक्टूबर 1898 को कुन्दौली, कानपुर में हुआ था। सन् 1918 में क्राइस्टचर्च कालेज कानपुर से बी.ए.करने के बाद लक्ष्मीकान्त जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. इतिहास विषय मे उत्तीर्ण कर अध्यापन कार्य मे संलग्न हो गये। कानपुर के क्राइस्टचर्च कालेज मे दीर्घअवधि तक अध्यापन व इतिहास विभाग के अध्यक्ष पद पर रहे और एक वर्ष कान्यकुब्ज कालेज के प्रधानाचार्य भी रहे। आपके शोध निबंध सरस्वती, प्रभा, सुधा, माधुरी, प्रताप ,वर्तमान और दैनिक जागरण मे प्रकाशित होते रहते थे। आपने पटकापुर मे अपना निवास बनाया और यहीं पर सन १९४६ ई० बाबू नारायणप्रसाद अरोड़ा व श्याम विजय पाण्डेय के साथ मिलकर कानपुर इतिहास समिति का गठन किया जिसके अध्यक्ष बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा व मंत्री आप बने। उसी वर्ष 1946 में आपने अपने भाई रमाकान्त त्रिपाठी के साथ मिलकर "कानपुर के कवि" और सन 1947 में कानपुर के प्रसिद्ध पुरुष  व 1948 में कानपुर के विद्रोही पुस्तक बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा व श्याम विजय पाण्डेय के साथ मिलकर लिखी व प्रकाशित कराई थी। सन 1950 में कानपुर का इतिहास भाग-1 व 1958 में कानपुर का इतिहास भाग-2  बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा के साथ मिलकर लिखी व प्रकाशित कराई थी। राय देवीप्रसाद पूर्ण की कविताओं का संकलन व सम्पादन "पूर्ण संग्रह" के नाम से किया जो गंगा पुस्तकमाला, लखनऊ से प्रकाशित हुआ था। 
    आपके दत्तक पुत्र डा.अनिल मिश्र (बब्बू)  डी. ए. वी. कालेज मे इतिहास के प्रोफेसर रहे। आपका निधन कठेरुआ मे वर्ष १९८१ मे हुआ। आप स्थानीय इतिहास के साथ साथ साहित्य संस्कृति राजनीति धर्म व समसामयिक विषयों पर निरन्तर लिखते रहते थे। आपका पटकापुर कानपुर का पाठागार बहुत ही समृद्ध था ।