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कानपुर का नवजागरण (भाग तीन)- पण्डित लक्ष्मीकांत त्रिपाठी

कानपुर का नवजागरण (भाग तीन)- पण्डित लक्ष्मीकांत त्रिपाठी

सन् 1900 का कानपुर अकाल से ग्रसित था। बेकारी, भूख और विदेशी शासन से लोग कराह उठे थे। इसी समय प्लेग की महामारी ने कानपुर पर अपना काला घेरा डाला। विप्लव के सभी उपादान उपस्थित थे, फलत: 11 अप्रैल 1900 को कानपुर में ऐतिहासिक प्लेग रायट आरम्भ हो गया।

क्राइस्टचर्च कॉलेज की स्थापना

सन् 1889 में जार्ज वेस्टकाट और उनके अनुज फास वेस्टकाट दो मिशनरी कानपुर आये और इन दोनों भाइयों ने सन् 1892 में क्राइस्टचर्च कॉलेज की स्थापना की जो उस समय की एकमात्र उच्च शिक्षण संस्था हो गई। इस कॉलेज ने कानपुर के सांस्कृतिक और राजनैतिक जीवन को एक नया मोड़ और कलेवर ही नहीं दिया बल्कि इसने अनेक स्वतंत्रता सैनिकों, क्रान्तिकारियों एवं देश के वरिष्ठ राजनीतिज्ञों को जन्म दिया। जार्ज वेस्टकाट ने ही कानपुर टैक्स एसोसिएशन की स्थापना की थी और प्लेग के दंगे के समय फास वेस्टकाट ने बीमार लोगों की बड़ी लगन और अध्यवसाय से सेवा की। कानपुर के निर्माण में वेस्टकाट बन्धुओं का बड़ा योगदान है। सन् 1899 में कांग्रेस का पन्द्रहवाँ अधिवेशन श्री रमेश चन्द्र दत्त की अध्यक्षता में लखनऊ में हुआ, जिसमें कानपुर के डेलीगेट्स एवं वालिन्टियरोंं के अतिरिक्त काफी संख्या मे लोग कांग्रेस का तमाशा देखने गए थे। क्राइस्टचर्च कॉलेज के तत्कालीन छात्र श्री बसंत कुमार घोष श्री अब्दुल हक़ ने कांग्रेस के वालिन्टियर के रुप मे बड़ा अच्छा कार्य किया था। लोगों के लौटने पर राजनीति की चर्चा स्थान स्थान पर होने लगी और अवसर पाकर नगर में कांग्रेस का पौधा तीव्र गति से बढ़ने लगा।

नगर में प्लेग-राइट (रायट)

सन् 1900 का कानपुर अकाल से ग्रसित था। बेकारी, भूख और विदेशी शासन से लोग कराह उठे थे। इसी समय प्लेग की महामारी ने कानपुर पर अपना काला घेरा डाला। विप्लव के सभी उपादान उपस्थित थे, फलत: 11 अप्रैल 1900 को कानपुर में ऐतिहासिक प्लेग रायट आरम्भ हो गया। इस विप्लव का प्रमुख कारण, अन्य कारणों के साथ ,4 मई 1897 के "केसरी" में छपा तिलक महाराज का वह लेख था जिसमें उन्होंने यह प्रतिपादित किया था कि "ताऊन तो एक बहाना है, वास्तव में सरकार लोगों की आत्मा को कुचलना चाहती है।" इसी लेख को पढ़कर चापेकर बन्धुओं ने पूना मे रैण्ड को गोली मारी थी। लोगों में यहाँ यह विश्वास पहले ही घर कर गया था कि अंग्रेज बस्तियों में जाते हैं और एक पुड़िया खोल देते हैं जिससे यह बीमारी फैलती है। शासन के लोगों को बलपूर्वक " क्वारेटीनो " मे रहने के लिए बाध्य किया और अधिकारियो की लापरवाही के कारण वहाँ पर रहने वाले लोग दिन दहाड़े लूटे जाने लगे | लोगो मे रोष बढ़ा और "क्वारेंटीन" की झोपड़ियाँ जला दी गईं। अधिकारियों ने ब्याज सहित तुरन्त बदला लेना आरम्भ किया जिससे कानपुर धधक उठा। रायट के दो प्रमुख नेताओं, कोकिला कुम्हार और करम इलाही को एक साथ फाँसी के तख्तों पर झुलाया गया। फाँसी के. तख्ते पर यह हिन्दू-मुस्लिम एकता अभूतपूर्व थी। सात दिन तक लगातार बाज़ार बन्द करके कानपुर ने अपना तीव्र विरोध प्रकट किया। नगर प्रतिशोध के लिए पागल हो उठा था और इसका उदाहरण परेड में हो रही वह सभा थी जिसमें सिख घुड़सवारों ने भीड़ पर घोड़े दौड़ाये थे और लोग चट्टान की भाँति खड़े हो कर उनका सामना करते थे। प्रतिशोध की इस ज्वाला ने कानपुर में राजनैतिक जीवन को अमरता तथा दृढ़ता दी और उसे खूब निखारा। इस समय कांग्रेस और नगर के राजनैतिक जीवन के प्राण थे कुरसवाँ निवासी प० जयनारायण बाजपेयी। आप लखनऊ के "एडवोकेट", लाहौर के "ट्रिव्यून", मद्रास स्टैण्डर्ड और अमृत बाजार पत्रिका के संवाददाता थे। पत्रिका में आपने मि० हाफ के अत्याचार की कहानी छपवा दी थी जिसके कारण आपको 500 रुपये जुर्माना भुगतना पड़ा था और पुलिस उनके पीछे पड़ गई थी। अनेक नवयुवकों ने बाजपेयी जी के चरणों में बैठकर राजनीति की शिक्षा ली थी। प्लेग रायट से नगर के हिन्दू - मुसलमान एक दूसरे के अत्यधिक निकट आ गये।
भारत अब (सन् 1900 से 1920) अपनी राजनीतिक तरुणाई में प्रवेश कर चुका था और उसे अब भिक्षा, अकर्मण्यता और गिड़गिड़ाहट की नीति से घृणा हो चली थी। लाल, बाल, पाल ने निष्क्रिय प्रतिरोध, बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षा आदि का युगान्तकारी कार्यक्रम देश के सम्मुख रक्खा था। जनता की इच्छा के विरुद्ध 20 जुलाई 1905 को लार्ड कर्जन ने बंग भंग कर ब्रिटिश सत्ता की शक्ति को भारतीय शक्ति से तौलने का दुस्साहस किया था। देश अब गरम था और अब वह कुछ कर गुजरने मे विश्वास करता था।

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क्रमशः

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रचनाकार परिचय

पण्डित लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी

ईमेल :

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

पण्डित अम्बिकाप्रसाद त्रिपाठी के पुत्र पण्डित लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी जी का जन्म 20 अक्टूबर 1898 को कुन्दौली, कानपुर में हुआ था। सन् 1918 में क्राइस्टचर्च कालेज कानपुर से बी.ए.करने के बाद लक्ष्मीकान्त जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. इतिहास विषय मे उत्तीर्ण कर अध्यापन कार्य मे संलग्न हो गये। कानपुर के क्राइस्टचर्च कालेज मे दीर्घअवधि तक अध्यापन व इतिहास विभाग के अध्यक्ष पद पर रहे और एक वर्ष कान्यकुब्ज कालेज के प्रधानाचार्य भी रहे। आपके शोध निबंध सरस्वती, प्रभा, सुधा, माधुरी, प्रताप ,वर्तमान और दैनिक जागरण मे प्रकाशित होते रहते थे। आपने पटकापुर मे अपना निवास बनाया और यहीं पर सन १९४६ ई० बाबू नारायणप्रसाद अरोड़ा व श्याम विजय पाण्डेय के साथ मिलकर कानपुर इतिहास समिति का गठन किया जिसके अध्यक्ष बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा व मंत्री आप बने। उसी वर्ष 1946 में आपने अपने भाई रमाकान्त त्रिपाठी के साथ मिलकर "कानपुर के कवि" और सन 1947 में कानपुर के प्रसिद्ध पुरुष  व 1948 में कानपुर के विद्रोही पुस्तक बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा व श्याम विजय पाण्डेय के साथ मिलकर लिखी व प्रकाशित कराई थी। सन 1950 में कानपुर का इतिहास भाग-1 व 1958 में कानपुर का इतिहास भाग-2  बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा के साथ मिलकर लिखी व प्रकाशित कराई थी। राय देवीप्रसाद पूर्ण की कविताओं का संकलन व सम्पादन "पूर्ण संग्रह" के नाम से किया जो गंगा पुस्तकमाला, लखनऊ से प्रकाशित हुआ था। 
    आपके दत्तक पुत्र डा.अनिल मिश्र (बब्बू)  डी. ए. वी. कालेज मे इतिहास के प्रोफेसर रहे। आपका निधन कठेरुआ मे वर्ष १९८१ मे हुआ। आप स्थानीय इतिहास के साथ साथ साहित्य संस्कृति राजनीति धर्म व समसामयिक विषयों पर निरन्तर लिखते रहते थे। आपका पटकापुर कानपुर का पाठागार बहुत ही समृद्ध था ।