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कानपुर का नवजागरण भाग दो- प० लक्ष्मीकांत त्रिपाठी

कानपुर का नवजागरण भाग दो- प० लक्ष्मीकांत त्रिपाठी

कानपुर इतिहास समिति के प्रथम मंत्री पण्डित लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी द्वारा कानपुर नवजागरण पर लिखित आलेख जो कि पूर्व में दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ था को हम धारावाहिक के रूप में प्रकाश्त करने जा रहे हैं, इसमें 1857 की क्रांति में कानपुर के योगदान का विस्तृत वर्णन है। यह आलेख हमें इतिहासकार अनूप शुक्ल जी के सौजन्य से प्राप्त हुआ है। 

नगर कांग्रेस की स्थापना

1885 मे 'इंडियन नेशनल कॉंग्रेस' की स्थापना हुई। इलाहाबाद मे चतुर्थ कांग्रेस के अधिवेशन के पूर्व सन् 1888 में प० पृथ्वीनाथ चक ने कानपुर में एक कांग्रेस कमेटी की स्थापना की। नाटा कद, तेज पूर्ण आँखें,गौर वर्ण और लम्बी दाढ़ी के भीतर एक मेधावी, अदम्य साहसी, उदार, दानी, किन्तु लौह व्यक्तित्व प० पृथ्वीनाथ के रुप मे कानपुर ने पाया था। वे तत्कालीन कानपुर के शीर्षस्थ वकील और बार एसोसिएशन के संस्थापक थे। प० मोतीलाल नेहरू, इक़बाल नारायण गुर्टू आदि ने पंडित जी से ही वकालत सीखी थी। वे तत्कालीन कानपुर के एकमात्र सर्वप्रिय कर्णधार थे। इस कांग्रेस अधिवेशन के लिए चन्दा लेने तथा कानपुर से प्रतिनिधियों को भेजने का आग्रह करने हेतु प० अयोध्यानाथ जी कानपुर पधारे और यहाँ पर चक साहब ने उनके कई व्याख्यान करवाये और स्वयं भी कुछ सभाओं में बड़ी दबंगई से वे बोले। प० प्रतापनारायण मिश्र न केवल स्वयं कांग्रेस के सक्रिय सदस्य बने, बल्कि 'ब्राह्मण' में 'कांग्रेस की ज ' नामक कविता में संस्था को त्राणदायिनी दुर्गा के रूप में देखा और लोगों से सहयोग देने के लिए कहा:--
जय जय राज प्रबन्ध शोधन हेतु वर वपु धारिनी।
जय जयति भारत की प्रजा उर एकता सँवारिनी।।
इमि देवि दुर्गा रुप सो जग की विपति निवारिनी |
जय जयति भगवति कांग्रेस असेस मंगल कारिनी।।


( 15 फरवरी हरिश्चन्द्र संवत- 7)


यही नहीं अपनी प्रसिद्ध कविता 'महापर्व' में कांग्रेस के इतिहास और गरिमा पर प्रकाश डालते हुए सभी देशवासियों को प्रयाग अधिवेशन में सम्मिलित होने के लिए मिश्र जी ने इन सशक्त शब्दों में आग्रह किय :--

सब विधि भारत हित निरत श्रीयुत ए.ओ.ह्यूम,
जिनकी कीरति कर रही श्वेत द्वीप लगि धूम।
श्रीयुत बदरुद्दीन जू मुसलमान कुलचन्द,
जिनका नामहि धर्म शशि षोडस कला अमन्द।
अली मुहम्मद दुहुन की जिहि उर भक्ति असीम,
भारत कर वर वीर सोई अली मुहम्मद भीम।
आरज कुल के देवता जिहि निज नावहि माथ,
सोई मरजादा पुरुषवर पूज्य अयोध्यानाथ।
छत्रिय कुल कीरति कलित रामपाल छितिपाल,
आरजभुव उद्धार हित जाको वपुख विशाल।
सगुण सदन मोहन मदन आरज महि सुखकन्द,
जासु मनोहर वचन सुनि मोहत सह्रदय वृन्द।
वंदनीय वुध वृन्दवर श्री सुरेन्द्र शुभ रास,
वचन वज्र जाके करहि भारत दु:ख विनास।
महापर्व शुभ जोग यह मिलिहि न बारहि बार,
ताते धावहु वेगि सब भारत सुत समुदार।

कानपुर कुछ कुनमुनाया और उसने धन और जन से कांग्रेस की सहायता की।
भारत की राजनीति अभी पलने में ही थी, और कांग्रेस अधिवेशनों में जो प्रस्ताव पारित होते थे उनमें राजभक्ति मे दृढ़ आस्था रखते हुए महारानी से प्रजारंजन की भीख माँगी जाती थी। लेकिन इधर जनता मे अबाधिगति से बढ़ती हुई कांग्रेस की लोक प्रियता ने ब्रिटिश शासन के आसन डुला दिए और सन् 1888 में लार्ड डफरिन ने कांग्रेस को राजद्रोही संस्था के रुप मे याद किया । सच तो यह है कि तत्कालीन पश्चिमोत्तर प्रदेश (अब उत्तर प्रदेश) के लेफ्टीनेन्ट गवर्नर सर आकलैण्ड कालविन ने इलाहाबाद कांग्रेस अधिवेशन को भंग करने के लिए उन सभी हथकंडो का आश्रय लिया जिन पर सरकार का बस था लेकिन उन्हें उल्टे मुँह की खानी पड़ी। कानपुर के तत्कालीन कलेक्टर मोल ने यह घोषणा की कि जो कोई कानपुर से डेलीगेट चुना जायेगा वह जेल के भीतर होगा। शासन के इस रोष से कानपुर मे जोश बढ़ा और प० पृथ्वीनाथ चक ने इलाहाबाद अधिवेशन के लिए डेलीगेटो के निर्वाचन के लिए बुलाई गई कांग्रेस सदस्यों की सभा में यह खुली चुनौतु दी कि 'अगर किसी मे हिम्मत हो तो मुझे छू ले।' फलत: कानपुर से चुने गये सभी डेलीगेट्स ने इलाहाबाद अधिवेशन में भाग लिया | कानपु से कांग्रेस के प्रथम डलीगेट निम्न व्यक्ति चुने गये थे:--

(1) बाबू त्रैलोक्यनाथ बनर्जी, वकील, म्युनिसिपल कमिश्नर (2) शेख अली अहमद , सौदागर (3) मौलवी मोहम्मद नवी, वकील (4) मौलवी सैयद अली हुसैन (5) मौलवी जमीलुद्दीन वकील (6) मौलवी अब्दुल जलील, वकील (7) हकीम फखरुल हुसैन (8) मुंशी तसदीक हुसैन, सौदागार (9) मौलवी करीमदाद खाँ, मोअल्लिम (10) मौलवी अबूस उद खाँ, मुफ्ती (11) मौलवी मुहम्मद सनाउद्दीन, सौदागार (12) बाबू वंशीधर, रईस (13) बाबू नानकचन्द , रईस (14) लाला शिवनारायण , सौदागार (15) लाला शिवप्रसाद , सौदागार (16) क्षेत्रनाथ घोष ,वकील (17) शेख करीम बख्श हाफिज, सौदागर ( 18) डा० मनोहर प्रसाद तिवारी (19) डा० महेन्द्रनाथ गांगुली (20) प० प्रताप नारायण मिश्र, संपादक ब्राह्मण (21) प० ह्रदयनारायण काश्मीरी, मंत्री हिन्दु समाज, वकील और पटकापुर वासी (२२) प० पृथ्वीनाथ चक, वकील , वाइस चेयरमैन म्युनिसिपल बोर्ड ((23) प० जानकी नाथ ,वकील और जमींदार (24) लाला प्रभूदयाल भार्गव संपादक शोलैतूर (25) लाला शिवरामदास मारवाड़ी (26) राय छेदी लाल बहादूर , रईस (27) श्री विशेश्वरनाथ , जमींदार (28) लाला गयाप्रसाद , रईस (29) मौलवी मोहम्मद अशरफ , वकील (30) प० धर्म नारायण काश्मीरी , महाजन (31) मुंशी भूप नारायण, सौदागर (32) शहजादा मिर्जा फर्रुखशाह , वसीकादार (33) मिस्टर रामचन्द्र एम. ए. वकील (34 ) गुरुबख्श सिंह,बिठूर जमींदार और संपादक भारतवर्ष (35) प० रामनारायण बाजपेयी, बिठूर | अंतिम दो व्यक्ति 6 दिसम्बर के जलसे मे चुने गये थे।


उपर्युक्त सूची से यह स्पष्ट है कि हिन्दुओं और मुसलमानों भ्रातृत्व की भावना पल रही थी और दोनों ही समान रुप से कंधा से कंधा भिड़ाकर राष्ट्र निर्माण करना चाहते थे।
सन् 1890 में कलकत्ता अधिवेशन में भाग लेने के लिये कानपुर से निम्न व्यक्ति डेलीगेट होकर गए थे और यह दूसरा अधिवेशन था जिसमें डेलीगेट चुने गये थे:--
(1) प० ह्रदयनारायण ,वकील (2) श्री हुकुमचन्द्र अग्रवाल, बैंकर (3) श्री शिवबक्स राम (4) श्री नन्दन बाबू (5) श्री गोविन्दप्रसाद मेहरोत्रा (6) श्री वंशी बाबू , रईस (7) बाबू शिवनारायण माहेश्वरी (8) संपादक कानपुर गजट श्री हरनाम सिंह (9) बाबू रामसिंह, रईस (10) श्री गंगादयाल, वकील (11) प० महराजकृष्ण काश्मीरी (12) मदनचन्द खन्ना (13) प० पृथ्वीनाथ चक (14) ला० देवीदास भगत (15) श्री बच्चूलाल, कागज वाले, तथा (16) प० जानकीदास, वकील आदि थे।

धनिकों की कांग्रेस

उन दिनों स्वभावत: कानपुर कांग्रेस भी कुछ बुद्धिजीवियों, वकीलों और धनी मानी व्यक्तियों का खिलौना थी, और अभी उसका प्रवेश जनता मे होना था | कांग्रेस का नगर में न तो कोई कार्यालय था और न ही कोई चर्चा ही उसकी साल भर होती थी। कांग्रेस अधिवेशनों के समीप आने पर राजनैतिक सरगर्मी थोड़े दिनों के लिए हो जाया करती थी, लेकिन कांग्रेस मे भाग लेने वाले व्यक्तियों को सरकार राजद्रोही मानती थी और नगर पुलिस उन्हे तंग करने मे कोई कसर न उठा रखती थी। इसका ज्वलंत उदाहरण यह है कि तत्कालीन नगर कांग्रेस सेक्रेट्री प० ह्रदयनारायण, वकील को कोतवाल अली हुसेन ने अहसान नामक गुण्डे को लगाकर बुरी तरह पिटवाया था। इससे नगर में बड़ा क्षोभ और असंतोष फैला था। धीरे धीरे कानपुर में उदारवादी कांग्रेस की जड़ें जमने लगी थीं और अब कभी कोई नेता आ जाता था तो उसका भाषण बार एसोसिएशन में हो जाया करता था। राजनीति में प्रवेश पाने के इच्छुक नवयुवकों द्वारा नगर भर मे अंग्रेजी मे छपे पर्चे बँटवा दिए जाते थे।

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रचनाकार परिचय

पण्डित लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी

ईमेल :

निवास : कानपुर (उत्तर प्रदेश)

पण्डित अम्बिकाप्रसाद त्रिपाठी के पुत्र पण्डित लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी जी का जन्म 20 अक्टूबर 1898 को कुन्दौली, कानपुर में हुआ था। सन् 1918 में क्राइस्टचर्च कालेज कानपुर से बी.ए.करने के बाद लक्ष्मीकान्त जी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. इतिहास विषय मे उत्तीर्ण कर अध्यापन कार्य मे संलग्न हो गये। कानपुर के क्राइस्टचर्च कालेज मे दीर्घअवधि तक अध्यापन व इतिहास विभाग के अध्यक्ष पद पर रहे और एक वर्ष कान्यकुब्ज कालेज के प्रधानाचार्य भी रहे। आपके शोध निबंध सरस्वती, प्रभा, सुधा, माधुरी, प्रताप ,वर्तमान और दैनिक जागरण मे प्रकाशित होते रहते थे। आपने पटकापुर मे अपना निवास बनाया और यहीं पर सन १९४६ ई० बाबू नारायणप्रसाद अरोड़ा व श्याम विजय पाण्डेय के साथ मिलकर कानपुर इतिहास समिति का गठन किया जिसके अध्यक्ष बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा व मंत्री आप बने। उसी वर्ष 1946 में आपने अपने भाई रमाकान्त त्रिपाठी के साथ मिलकर "कानपुर के कवि" और सन 1947 में कानपुर के प्रसिद्ध पुरुष  व 1948 में कानपुर के विद्रोही पुस्तक बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा व श्याम विजय पाण्डेय के साथ मिलकर लिखी व प्रकाशित कराई थी। सन 1950 में कानपुर का इतिहास भाग-1 व 1958 में कानपुर का इतिहास भाग-2  बाबू नारायण प्रसाद अरोड़ा के साथ मिलकर लिखी व प्रकाशित कराई थी। राय देवीप्रसाद पूर्ण की कविताओं का संकलन व सम्पादन "पूर्ण संग्रह" के नाम से किया जो गंगा पुस्तकमाला, लखनऊ से प्रकाशित हुआ था। 
    आपके दत्तक पुत्र डा.अनिल मिश्र (बब्बू)  डी. ए. वी. कालेज मे इतिहास के प्रोफेसर रहे। आपका निधन कठेरुआ मे वर्ष १९८१ मे हुआ। आप स्थानीय इतिहास के साथ साथ साहित्य संस्कृति राजनीति धर्म व समसामयिक विषयों पर निरन्तर लिखते रहते थे। आपका पटकापुर कानपुर का पाठागार बहुत ही समृद्ध था ।