Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
डॉ. मिथिलेश दीक्षित की क्षणिकाएँ

चेहरे बिकाऊ थे कभी
अब तो मुखौटे बिक रहे हैं,
साफ़-सुथरे दिख रहे हैं।

वीणा शर्मा वशिष्ठ की क्षणिकाएँ

हर मन की क्यारी में
बैर पनप रहा
क्यों न...
प्रेम की खाद डाल
माटी थपथपा दें...
नेह के
पुष्प खिला दें।

संध्या यादव की क्षणिकाएँ

दुल्हन बनने की चाह में
एक दुल्हन ने उम्र गुज़ार दी
रंग-बिरंगे कपड़ों में विधवा रह कर

शिव डोयले की क्षणिकाएँ

हम प्लेटफार्म बने
खड़े रहे,
और समय
रूमाल हिलाता
गुज़र गया।