Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
डॉ० नुसरत मेहदी का व्यंग्य लेख 'फेसबुक प्रबंधन व साहित्य में स्थान'

फेसबुक ने अनेक साहित्यकारों व शायरों को जन्म दिया है। आज से पहले यह कार्य कभी इतना सरल नहीं था। कोई अंतर नहीं पड़ता यदि अधेड़ आयु में भी आपको अपनी साहित्यिक क्षमता का अनायास बोध हो जाये।

दामाद: द मोस्ट ओवररेटेड रिश्ता- प्रीति 'अज्ञात'

होता क्या है कि जैसे बहू गृहप्रवेश के साथ ही पूरा घर सँभालने लगती है, इसके ठीक उलट दामाद जी के चरण पड़ते ही पूरा घर उन्हें सँभालने लगता है। परिजन स्वागतातुर हो उनकी राहों में फूल बिछा दिया करते हैं। प्रबल प्रेम पक्ष तो अपनी जगह है ही लेकिन कहीं एक भय भी रहता है कि दामाद नाराज़ न हो जाए। उसकी नाराज़गी का अप्रत्यक्ष मतलब बेटी को दुःख मान लिया जाता है।

धर्मपाल महेंद्र जैन का व्यंग्य लेख 'गणतंत्र के तोते'

मालिक थे तो आदमी, पर वे आदमीयत गिरवी रख आए थे और उन्होंने जनहित में बलशाली जानवरों के गुण अपना लिये थे। फिर भी वे जुगनू पकड़ रहे थे।जुगनू जनता जैसे मरियल थे पर चमकदार थे।