Ira
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डॉ० संध्या तिवारी का संस्मरण 'अप्रिया नीलकंठी'

जेठ की तपती धूप-सा पापा का गुस्सा माँ अपने मन के हरे-भरे गुलमोहर पर दहकते फूलों-सा सजा लेती। उस वृक्ष के नीचे पूरा परिवार और हम बच्चे छाया का भले ही अनुभव करते रहे हों लेकिन दंदक तो छू ही जाती थी, तो फिर माँ कैसे सहती होगी उस प्रचंड क्रोधाग्नि को?