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आलोचना के सिरमौर नामवर सिंह जी से एक मुलाक़ात- डॉ० कविता विकास


नामवर  सिंह जी ने आलोचना के पहलुओं पर अपने जो विचार दिए और कुछ बिंदुओं पर बात-चीत की शैली में हमारे भी विचार जाने। यह मुलाक़ात और उनके दिशानिर्देश हिंदी के शिक्षकों के लिए मील का पत्थर साबित हुए। वे यादें इसलिए भी अमर हो जाती हैं जिनमे व्यक्ति विशेष से कुछ सीखने को मिला हो और उन पर ध्यानपूर्वक अमल किया गया हो। हमारे आदर्श रहे हिंदी साहित्य के लोकप्रिय आलोचक-साहित्यकार को आज भी याद करके सर श्रद्धा से झुक जाता है।

प्रियंका गुप्ता का संस्मरण 'ज़बान सम्हाल के'

अक्सर उनसे बात करते समय मुझे बीच में हिसाब लगाना पड़ता है कि चीन के रास्ते पर चले थे, अचानक जापान कैसे आ गया? जब वो अपनी यादें आपके साथ बाँटती हैं, तो तैयार रहिए..कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा...भानुमति ने कुनबा जोड़ा..कहावत को बीच-बीच में बुदबुदाते रहने के लिए..। बातों तक तो तब भी ठीक है, उन्हें आप छूटा सिरा पकड़ा दीजिए तो वो सही दिशा में चलने लगेंगी..पर शक्लें भूलने का क्या कीजे?

बिछड़े सभी बारी-बारी- अनिता रश्मि

पतले-दुबले, लंबे, धीर-गंभीर, गौरवर्णी भारत भाई ने उसी समय अपना नाम यायावर रख छोड़ा था। जिंस के ऊपर लंबा कुर्ता और कांँधे पर कपड़े का बड़ा-सा थैला। थैले में अनगिन साहित्यिक किताबें, साहित्यिक सामग्री कोर्स की पुस्तकों के अलावा अर्थात उन दिनों के कवियों, साहित्यकारों, यायावरों की मुकम्मल तस्वीर। मोटे चश्मे के भीतर से झाँकतीं दो बुद्धिदीप्त आँखें! अत्यधिक विनम्र, निश्छल भी।

एग्ज़ाम का रिज़ल्ट और एक क़िस्सा- सीमा मधुरिमा

मेरा हाई स्कूल का रिज़ल्ट आया था। हम लोग हर बार की तरह इस बार भी गर्मी की छुट्टियों में मामा के घर छुट्टियाँ बिताने गये हुए थे। उसी बीच रिज़ल्ट आया। उस समय रिज़ल्ट पेपर में छपा करता था। मेरे बड़े भैया को रोल नंबर देकर गये थे कि जब रिज़ल्ट आएगा देख लीजिएगा। रिज़ल्ट के बाद ही बड़े भैया हमें मामा के यहाँ लेने आ गये और उन्होंने दुख भरी ख़बर सुनाई की सीमा फेल हो गयी है।