Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
दास्तान ए जाजमऊ (ययातिमऊ), कानपुर-उत्तर प्रदेश- अनूप कुमार शुक्ल

प्राचीनकाल से जाजमऊ कानपुर का भूभाग दक्षिण पंचाल का अंग रहा हैं। डॉ० अंगनेलाल जी कि 'उत्तर प्रदेश के बौद्ध केन्द्र' पुस्तक के अनुसार व बौद्ध साहित्य के मुताबिक अहोगंग (हरिद्वार) से सहजाति (भीटा,प्रयागराज) तक जाने वाला मार्ग व राजगृह से तक्षशिला जाने वाला सुप्रसिद्ध वणिक पथ कानपुर जिलान्तर्गत होकर ही जाता था। सहजाति से अग्गलपुर (वर्तमान कानपुर का जाजमऊ का विशाल टीला) तत्पश्चात उदुम्बर, कान्यकुन्ञ (कान्यकुब्ज), संकस्य (संकिसा) सोरेय्य (सोरो) से यह मार्ग सीधे अहोगंग पहुँचता था।

टांगीनाथ: देवाधिदेव शिव का महिमा स्थल- डॉ० हरेन्द्र सिन्हा, पुरातत्वविद्

प्रागैतिहासिक काल में मनुष्य को धर्म की कोई अवधारणा हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता। लेकिन इतना अवश्य समझा जा सकता है कि प्रकृति के अतिवादी  स्वरुप से वो भयभीत रहा करते होंगे, विशेष कर आंधी-तूफान,बरसात, बिजली का चमकना-कड़कना, आग का लगना आदि ये सारी घटनाएं उन्हें अवश्य डराती होंगी। आगे चलकर एक अन्य घटना से भी वह संभवत: डरने लगे होंगे, और वो घटना थी, उनकी गुफाओं में शिशु जन्म। जब उनके साथ रहने वाली गर्भवती  महिलाएं शिशु को जन्म देती होंगी, तब इस  पूरी प्रक्रिया को देखकर उन्हें ये लगता होगा कि ये कोई चमत्कार, कोई जादू है, जो स्त्रियां करती हैं और नए मानव का निर्माण करती हैं।