Ira
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इक्कीसवीं सदी की संस्कृत कथाओं में चित्रित समाज- शिखारानी

माता पुनरपि विचारेषु निमग्ना भवति यत्‍ कदा मम नेत्रे पिहिते भवेताम् अपि च निमिषा कदा नववधूवेषं धारयेदिति ।[10]

समकालीन हिंदी काव्य में बेरोज़गारी का चित्रण- डाॅ० अलका शुक्ला

समकालीन कवियों ने बेरोज़गारी के कारण अभावग्रस्त जीवन का भी मार्मिक वर्णन किया है। आधी रोटी के लिए लड़ते बच्चे, ख़ाली कनस्तर, उदास चूल्हा, दोस्त की कमर, जो वक्त के पहले ही झुक गई है, रोजगार कार्यालय में युवाओं की लम्बी लाइन, एक वेकेन्सी के लिए अर्जियाँ लिये एक हज़ार नौजवान, एक सवारी को ले जाने के लिए बीस रिक्शे वाले गिड़गिड़ाते हुए, छँटनी के बाद, 'इंकलाब ज़िंदाबाद' के नारे लगाते फैक्ट्री के बाहर एकत्र लोग, नौकरी की आस में चालीस वर्षीय कुंवारे और कुंवारियों आदि संवेदनाओं को समकालीन रचनाकारों ने बड़ी गम्भीरता से उठाया है।

लक्ष्मण बूटी संजीवनी बूटी- डॉ० आरती 'लोकेश'

शोध-सार

रामाचरितमानस के छठे कांड 'लंका काण्ड' में रावण के पराक्रमी शूरवीर पुत्र मेघनाद से लड़ते हुए प्रभु राम के छोटे भाई लक्ष्मण मूर्छित हो जाते हैं तो संकटमोचन पवनपुत्र हनुमान को पहले भेजा जाता है लंका के सुविख्यात वैद्य सुषेण को लाने और वैद्य के बताने पर संजीवनी बूटी लेने भेजा जाता है। जिस पर्वत पर बूटी मिलती है, उसे उखाड़कर अंजनिसुत लंका ले आते हैं और सुषेण वैद्य लक्ष्मण जी की चिकित्सा कर उन्हें होश में लाते हैं। संजीवनी बूटी देनेवाला यह पर्वत अब श्रीलंका की ही नैसर्गिक सम्पदा में सम्मिलित है। श्रीलंका की जलवायु में उगने वाले पेड़-पौधों से प्रतिकूल इस पर उगी भिन्न वनस्पति इस बात का प्रमाण है कि यह मूल रूप से लंका का न होकर बाहर से आगत सम्पत्ति है। संजीवनी बूटी के गुण किसी अन्य बूटी से अलग हैं। यह एक आयुर्वेदिक शक्तिदायक औषधि है, जो मृत कोशिकाओं में पुनर्जीवन का संचार करती है। इसकी मुख्य विशेषता है कि पानी की कमी से सूखकर पपड़ी जैसे बन जानेवाले ये पौधे पानी के संसर्ग से एक अर्से बाद भी पुन: तरोताज़ा हो जाते हैं। अपनी ही मृत कोशिकाओं में जीवन फूँक देते हैं, कुकनूस पक्षी की तरह। जिस ज्ञान-विज्ञान से हमारे पूर्वज शताब्दियों पहले समृद्ध थे, उसे इतने वर्षों बाद हम कितना जान पाए हैं, यह समझने की आवश्यकता है। संजीवनी बूटी के इतिहास तथा उस पर हुए अनुसंधानिक तथ्यों का समावेश इस पत्र में किया गया है तथा ऐसी चमत्कारिक औषधियों के ज्ञान को लुप्त न होने देने पर बल दिया गया है।

मैं अखिल विश्व का गुरू महान : अटल बिहारी वाजपेयी- डॉ० अमित कुमार मिश्रा

किसी भी चीज़ को देखने का अटल जी का अपना एक अलग ही नज़रिया था। भारत को वे मात्र एक ज़मीन का टुकड़ा नहीं मानते थे। उनका मानना था कि भारत मानवीयता का एक उच्च आदर्श है। यहाँ अनेक संस्कृतियों, भाषा, जाति, धर्म, रंग-रूप आदि के माध्यम से अखंडता में एकता का एक ऐसा संदेश प्रतिध्वनित होता है, जिससे विश्व अभिभूत है। भारत के इन्हीं सब गुणों के कारण उसे विश्वगुरु की उपाधि दी गई है।