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इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
यदि हम अब भी न चेते- मीनाधर पाठक

एक समय था कि घर में एक कूलर होता था और घर के सभी सदस्य उसी एक कमरे में खाते-पीते, सोते-बैठते थे। अब सभी के घर लगभग हर कमरे में एयर कंडीशनर लगा है। सभी घरेलू कार्य मशीनी हो गए हैं इसलिए पानी का खर्च भी अनियंत्रित हो गया है। कई बार तो घरों की छत पर रखी टंकियों से भूल वश या लापरवाही से देर तक मीठा पानी व्यर्थ ही बहता हुआ सीधे गंदी नाली में चला जाता है। हम अपनी इन आदतों पर लगाम तो लगा ही सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की प्रासंगिकता- अलका मिश्रा

भारत में श्रमिकों की स्थिति पर विचार करना भी अत्यंत आवश्यक है । भारत में, विभिन्न क्षेत्रों और क्षेत्रों में श्रमिकों की स्थिति अलग-अलग है। हालाँकि कुछ उद्योगों ने बेहतर कामकाजी परिस्थितियाँ और वेतन प्रदान करने में प्रगति की है, लेकिन अन्य उद्योगों में चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। 

उत्सवों का देश और चुनावी परिवेश- अलका मिश्रा

ख़बरों को तीख़े तेवर देने के लिए मीडिया इसे चुनावी समर भी कहा जाने लगा है। समर शब्द लगते ही यह बिल्कुल युद्ध जैसा प्रतीत होने लगता है और हर नेता, हर पार्टी निजी स्वार्थों के चलते इतने सुंदर समाज में अपने भड़काऊ वक्तव्यों से प्रेम से सराबोर दिलों में ज़हर घोलने का काम करना शुरू कर देते हैं।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मेरी नज़र से- अलका मिश्रा

जिन परों में उड़ानन ज़िंदा  है
उनमें इक आसमान ज़िंदा है