Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
सत्या शर्मा 'कीर्ति' की कविताएँ

पर बार-बार सज़ा के बाद भी
हम संभलते नहीं
क्योंकि मनुष्य को
भगवान बन जाने का अहंकार
उसे मनुष्य भी कहाँ रहने देता है

हरेराम 'समीप' की कविताएँ

वे/ प्रेम से करते हैं घृणा/
और घृणा से करते हैं प्रेम

वे उगाना चाहते हैं/ अतीत
वर्तमान के खेतों में
और फ़सल काटना चाहते हैं/ भविष्य की

वीना श्रीवास्तव की कविताएं

ख़ून के बहते धार को रोकने में
हमारा भी रक्त रिसेगा निश्चित ही
वैसे भी
आधी दुनिया के रक्त रिसावी चक्र से ही
जन्मी है तुम्हारी दुनिया

प्रतिभा सुमन शर्मा की दो कविताएँ

कई बार मैं पत्थर हूँ और हूँ बेजान
यह सोचकर कइयों ने किया उपहास
कितनों ने तो उखाड़ फेंकने का यत्न किया
पर स्तंभ हूँ मैं
जड़ें बेहद रुंझी है मेरी