Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
सुधा अरोड़ा का साक्षात्कार- गंगा शरण सिंह

तराजू में तौलकर मैंने कागज़ नहीं रँगे

कथाकार प्रेम गुप्ता 'मानी' से कल्पना मनोरमा की बातचीत

प्रेम गुप्ता 'मानी' सुप्रसिद्ध लेखक और 'यथार्थ कथा संस्थान' की संस्थापिका रहीं, जिन्होंने कविता, कहानी, लघुकथा समेत साहित्य की सभी विधाओं में क़लम चलाई। 'बाबूजी का चश्मा' उनका चर्चित कथा संग्रह है। उनके कथा साहित्य ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। प्रेम गुप्ता मानी जी की कहानियों में किस्सागोई का आनंद तो मिलता ही है, साथ में उनकी कथाएँ सीधे-सीधे समाज में आमजन से जुड़ती हैं। मानी जी एक दोस्त लेखक रहीं। उनकी लिखी कहानियों से पाठक झटपट जुड़ जाता है। मानी जी बहुत ही मृदुभाषी स्वभाव की लेखिका रहीं। उनसे बात करके ज्ञात होता रहा कि वे प्रौढ़ साहित्य के साथ बाल साहित्य लिखने में भी रुचि रखती थीं। उनका साहित्य कल्पना के साथ यथार्थ की भी बात करता है। प्रेम गुप्ता मानी जी के साहित्य को पढ़ते हुए बार-बार जिज्ञासा उत्पन्न होती रही कि इतनी सुंदर कृतियाँ सिरजने वाली मानी जी का अपना जीवन कैसा रहा होगा? उन्होंने लेखन की प्रेरणाएँ कहाँ से प्राप्त की होंगी, जो उन्हें साहित्य सृजन ही नहीं साहित्य सेवा की राह पर लेकर आईं। मानी जी ने बड़े खुलेपन और साफगोई से मेरे प्रश्नों के उत्तर दिए हैं। इसके साथ ही उनके जीवन के कुछ ऐसे पहलू भी जानने को मिले कि मुझे लगा, मैं उन्हें एक नए रूप में जान रही हूँ।

प्रस्तुत है हिंदी साहित्य की प्रमुख स्तंभ प्रेम गुप्ता मानी जी से कल्पना मनोरमा के द्वारा लिया गया साक्षात्कार, जो उनके व्यक्तित्व के कुछ पहलुओं के उद्घाटन के साथ-साथ साहित्य की कई गंभीर सवालों की भी पड़ताल करता है।

जनवादी अनन्य नैष्ठिक कलमकार 'कमल किशोर श्रमिक' से- अरुण तिवारी

आमतौर पर जनवादी लघु पत्रिकायें अधिक समय तक नहीं टिक पातीं,क्योंकि हर समय वह अर्थ संकट से गुजरती हैं ।सरकारी पत्रिकाओं /पोषित पत्रिकाओं में छपने वाले लेखकों की भीड़ लगी रहती है ।अपने मूल्यों पर ही लिखकर इन पत्रिकाओं में भी कई बार लिख चुका हूं ,शायद पैसा पाने के लालच में या छपास के क्रम में ।लेकिन यह लघु पत्रिकाएं जो बहुत थोड़ी संख्या में छपती हैं पोषित पत्रिकाओं के बरक्स अधिक ईमानदार होती हैं।

हिंदी ग़ज़ल विचार युग की ग़ज़ल है- डॉ० भावना

हिंदी की समकालीन महिला ग़ज़लकारों में डॉ० भावना का महत्वपूर्ण स्थान है। ग़ज़ल लेखन के साथ-साथ ग़ज़ल पर आलोचनात्मक काम भी ये बराबर करती रही हैं। अनेक महत्त्वपूर्ण आलोचना ग्रन्थों और समवेत संकलनों में आपकी उपस्थिति रही है। इनकी रचनाएँ पाठ्यक्रम का हिस्सा भी रही हैं। प्रस्तुत है डॉ० भावना से शोध-छात्रा आरती देवी की बातचीत।