Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
ज़िंदगी के सच्चे अफ़साने- डॉ० राकेश शुक्ल

जया राजपूत की कहानियाँ ऐसी ही हैं, जिनमें ज़िंदगी के सच्चे अफ़साने हैं --बिल्कुल सच्चे। झूठ कुछ भी नहीं। वैसे भी कहानियाँ झूठी नहीं होतीं। उतनी ही तिक्त- मधुर, नर्म और कठोर, जितना हमारा जीवन।

ये मोहब्बत की सायबानी है- डॉ० साकेत रंजन प्रवीर

फ़लसफ़ी  शायर मंचों से और मुशायरे लूटनेवाले शायर किताबों और रिसालों से मुसलसल ग़ायब होते चले गए। दर'अस्ल आज ऐसे गिनती के शो'अरा हैं जो मंच पर होते हुए भी अदब  को उसके हिस्से का हक़ देते हैं। इन्हीं चन्द शो'अरा और शायरात से ग़ज़ल के मुस्तक़बिल की उम्मीद बची है। नई नस्ल में ऐसे शो'अरा/शायरात की सफ़ में एक मख़सूस नाम चाँदनी पाण्डेय का है।

ग़ज़ल में महिला ग़ज़लकारों का दख़ल- डॉ० ज़ियाउर रहमान जाफ़री

हिंदी में महिला ग़ज़लकारों की संख्या हमेशा से कम रही है। सिर्फ़ हिंदी क्या, उर्दू की छह सौ साल पुरानी शायरी की परंपरा में भी स्त्री ग़ज़लकारों में हमारा ध्यान सिर्फ़ परवीन शाकिर और किश्वर नाहीद जैसे कुछ लोगों पर जाता है। एक समय में महिलाओं का ग़ज़ल लिखना ख़राब समझा जाता था। कहते हैं कि उर्दू के अजीम शायर मीर तकी मीर की पुत्री का दीवान तक शायरी करने पर जला दिया गया था। इन हिंदी-उर्दू के चंद महिला ग़ज़लकारों में भी बिहार की ज़मीन से महिला ग़ज़लकारों को तलाशना एक संपूर्ण शोध का विषय है, जिसे अविनाश भारती जैसे उद्यमी लोग ही पूरा कर सकते हैं।

दर्पण की भाँति प्रतिबिंबित करती ‘फ़िबोनाची वितान’ कहानियाँ- शैल अग्रवाल

कहा जाता है कहानियाँ कल्पना लोक में ले जाने के साथ-साथ तत्कालीन समय और समाज को दर्पण की भाँति प्रतिबिंबित करती हैं और यह बात आरती लोकेश गोयल के इस नए कहानी-संग्रह पर पूरी तरह से सही प्रतीत होती है। यदि यहाँ भारतीय समाज और मूल्य व मान्यताएँ है, तो दुबई भी है। पश्चिम का वैभव-विलास और एकाकी जीवन भी। कोरोना-काल का एक बोनजाई उल्लेख भी मिलता है हमें इन कहानियों में...