Ira
इरा मासिक वेब पत्रिका पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। दिसंबर 2024 के अंक पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
भीतर की ध्वनि को प्रतिध्वनित करता हुआ संग्रह : सन्नाटे में शोर बहुत है- नेहा कटारा पाण्डे

इनकी ग़ज़लों में ‌जहाँ जीवन‌ की समस्याएँ हैं तो वहीं उनसे जूझने का जोश भी। जहाँ रिश्तों से छले‌ जाने‌ का अहसास है तो उन्हीं रिश्तों के कारण जीवन‌ में मिठास की अनुभूति भी है। जहाँ एक ओर ज़िम्मेदारियों का आभास है तो उनके‌ साथ ही सपनों को‌ देखना और उन्हें पूरे करने के प्रयास भी हैं।

उम्मीदों और सपनों से भरी ग़ज़लों का प्रतिनिधि संग्रह: ज़िंदगी आने को है

ज़िंदगी आने को है विनय मिश्र का चौथा ग़ज़ल संग्रह है। इस संग्रह को पढ़ने के बाद कविता के विषय में और विशेषत: हिंदी ग़ज़ल के विषय में जो एक बात स्पष्ट दिखाई पड़ती है, वह यह कि ग़ज़ल में, कविता का पूरा संसार समाया है। कविता इस संसार को 360 डिग्री पर दिखाने की सामर्थ्य रखती है और दिखाती भी है।

प्रवासियों की समस्याओं को उजागर करता व्यंग्य संग्रह: डॉलर का नोट

डॉलर का नोट धर्मपाल महेंद्र जैन का हालिया प्रकाशित व्यंग्य संग्रह है। इससे पहले मैंने इनके दो व्यंग्य संग्रह ‘भीड़ और भेड़िए’ तथा ‘दिमाग़ वालो सावधान’ पढ़े हैं। डॉलर का नोट व्यंग्य संग्रह का विषय अन्य दो व्यंग्य संग्रहों के विषयों से अलग है। इस व्यंग्य संग्रह में प्रवासी भारतियों को विदेश में रहकर किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, का ज़िक्र किया गया है। इस संग्रह के सभी व्यंग्य निबंधात्मक व्यंग्य की शैली में हैं।

पिता के नायकत्व पर विमर्श करती ग़ज़लें: उँगली कंधा बाजू गोदी- अखिलेश श्रीवास्तव

जो नई-नवेली-सी बात यह संग्रह पढ़कर मेरे मन में उभर रही है, वह बेटियों की दृष्टि से पिता को देखने को आतुर है। पुत्र समयातीत होते हुए पिता भी होता है। उसके लिए पिता पर लिखना अपनी ही भूमिका को शब्द देना है पर बेटियाँ जब पिता पर लिख रही हैं तो उन्हें भाव के समंदर पर ही पूरी कविता लिखनी है। कथ्य और भाव का अंतर बच ही नहीं सकता, पिता के लिए बेटी के पास जो भाव होते हैं, वो बेटे के भाव से अलग हैं।